(अमित तिवारी) पटियाली। एक ऐतिहासिक नगर जो धीरे धीरे अपनी पहचान खो रहा है,
कहा जाता है कि 5 हज़ार साल पहले इस नगर में भव्य भवन संरचनाओं की एक विशाल श्रृंखला मौजूद थी,
पांचाल राज्य के अंतर्गत राजा द्रुपद की दो राजधानियां थीं जिनमें एक कम्पिल और दूसरी पटियाली, पटियाली के विशाल दुर्ग पर राजा द्रुपद का मुख्यालय हुआ करता था,
यहां राजा द्रुपद की एक रानी दासी पटिया का महल भी था, दुर्ग के उत्तर में बूढ़ी गंगा प्रवाहित होती थी,
दुर्ग के पूर्वी भाग में गुरु द्रोणाचार्य का आश्रम हुआ करता था,
दुर्ग के पश्चिमी भाग में आदि शक्ति मां पाटलावती देवी का मंदिर था, पटियाली के भूभाग पर राजा द्रुपद के पश्चात अश्वस्थामा ने भी शासन किया, जिसके उपरांत पटियाली अनेक राजवंशों के अधीन रहा,
जनश्रुतियों के अनुसार बादशाह बलबन से लेकर मुहम्मद बिन तुगलक अकबर और फिर अंग्रेज हुकूमत के दौरान ये नगर जिला मुख्यालय भी रहा,
लगातार बढ़ती जनसंख्या और घटते पारिवारिक प्रभुत्व के कारण बड़ी बड़ी हवेली छोटे छोटे स्वरूपों में विभक्त होतीं गयीं, समय पर हावी आधुनिकता ने इस ऐतिहासिक नगर को धरती के गर्भ में समा दिया,
इस नगर की 70 फीसदी वर्तमान संरचनाएं हज़ारों साल पुरानी भित्तियों पर टिकीं हैं, इनके अलावा इक्का दुक्का प्राचीन इमारतें ही दिखतीं हैं वो भी अब खंडहर में तब्दील हो चुकीं हैं, लोग इनके गिरने का इंतजार कर रहे हैं, आने बाले दिनों में इन बची कुची इक्का दुक्का संरचनाओं पर भी आधुनिकता की दीवार खड़ीं हो जायेंगीं,
धीरे धीरे यह ऐतिहासिक नगर अब अपनी पौराणिक पहचान खोता जा रहा है,
अगर हमें इस नगर की पौराणिक व ऐतिहासिक महत्ता बचानी है तो इनके संरक्षण के लिए व्यापक स्तर पर काम करना होगा,
Comments
Post a Comment